लिक्विड ऑक्सीजन प्लांट को छोडकऱ स्टोरेज की कोई व्यवस्था नहीं
जिले में बनाए गए प्लांटों से ऑक्सीजन को स्टोर करने की कोई व्यवस्था नहीं है। बीडीके अस्पताल में बना एक लिक्विड ऑक्सीजन प्लांट में स्टोरेज की सुविधा है। इन ऑक्सीजन प्लांटों से पाइप लाइन के जरिए सीधे ऑक्सीजन पहुंचाई जाती है। अस्पतालों में लगे बेड से पाइप लाइनें कनेक्ट कर रखी हैं। उदाहरण के तौर पर देखें तो अगर पांच मरीजों को ऑक्सीजन की जरूरत पड़ती है तो प्लांट को चलाना पड़ता है। अगर स्टोरेज की व्यवस्था होती तो दिन और रात में बार-बार इन प्लांटों को चलाने की जरूरत नहीं पड़ती। बार-बार चलाने से खर्चा कई गुणा बढ़ जाता है।जिले के सरकारी अस्पतालों में 14 ऑक्सीजन प्लांट हैं। इनमें फिलहाल दो ही बंद पड़े हैं। अन्य अस्पतालों में मरीजों को ऑक्सीजन की जरूरत के हिसाब से चलाते हैं।
देखरेख में लगे कर्मचारियों पर आ रहा खर्चा
जिले में प्लांटों की देखरेख पर भी लाखों का खर्चा आ रहा है। प्लांट लगाने वाले इनकी देखरेख के लिए कांट्रेक्ट पर कर्मचारी लगा रखे हैं। इन्हें भी हर महीने वेतन देना पड़ता है। इसके अलावा प्लांट पर एक डॉक्टर समेत नर्सिंग स्टाफ को जिमेदारी दे रखी है।
14 ऑक्सीजन प्लांट हैं झुंझुनूं जिले में: कई नहीं चल रहे
झुंझुनूं जिले के सरकारी अस्पतालों में 14 ऑक्सीजन प्लांट हैं। इनमें कई का संचालन बंद है। कहीं पर इनपर ताला जड़ा हुआ तो कहीं पर इन्हें चलाया ही नहीं जा रहा है। जिले के सबसे बड़े राजकीय भगवानदास खेतान अस्पताल की बात करें तो यहां पर छह ऑक्सीजन प्लांट हैं। यहां पर तीन ऑक्सीजन प्लांट धूल फांक रहे हैं। नगर परिषद की ओर से बनाए गए दो प्लांट कबाड़ होते जा रहे हैं। यहां पर केंद्र सरकार की ओर से बनाए गए लिक्विड प्लांट समेत तीन प्लांट चल रहे हैं। जबकि एक प्लांट तकनीकी खराबी की वजह से बंद पड़ा है। जिसे दिवाली के आस-पास चालू करने की बात कही जा रही है। बीडीके अस्पताल में चार सौ पलंगों पर ऑक्सीजन सप्लाई होती है।
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