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पुष्कर में कैसे स्थापित हुए 52 घात ? वीडियो में जानिए इस एक स्थान पर ही क्यों सफल मानी जाती है ब्रह्म देव की पूजा

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राजस्थान का पुष्कर जगतपिता ब्रह्माजी के लिए प्रसिद्ध है। हिंदू मान्यता के अनुसार पुष्कर को दुनिया का पांचवां तीर्थ भी माना जाता है। हरिद्वार की तरह पुष्कर भी हिंदुओं का बड़ा तीर्थ स्थल है। सभी तीर्थ स्थलों में सबसे बड़ा तीर्थ स्थल होने के कारण इसे तीर्थराज पुष्कर कहा जाता है। इस तीर्थ स्थल पर पुष्कर सरोवर स्थित है, जिसके चारों ओर कुल 52 घाट हैं। इन 52 घाटों का निर्माण अलग-अलग राजघरानों, पंडितों और समुदायों ने मिलकर करवाया है, जिसमें सबसे बड़ा घाट गौ घाट कहलाता है। शास्त्रों के अनुसार माना जाता है कि अगर आप चारों धाम बद्रीनाथ, जगन्नाथ, रामेश्वरम और द्वारका की यात्रा कर चुके हैं, लेकिन आपने पुष्कर के दर्शन नहीं किए, तो आपकी यात्रा सफल नहीं मानी जाएगी। ऐसे में पुष्कर का महत्व और भी बढ़ जाता है। पुष्कर में प्रसिद्ध मेला भी लगता है। पुष्कर भारत के उन चुनिंदा स्थानों में से एक है, जहां भगवान ब्रह्मा का मंदिर है।

पुष्कर सरोवर पर 52 घाट हैं
न्यूज 18 से बातचीत में पंडित रवि शर्मा ने बताया कि पुष्कर सरोवर के चारों ओर कुल 52 घाट बने हुए हैं। इन सभी 52 घाटों का अपना धार्मिक और पौराणिक महत्व है। इनमें गौ घाट, ब्रह्मा घाट, वराह घाट, बद्री घाट, सप्तऋषि घाट, तरणी घाट और अन्य घाट शामिल हैं। पुष्कर में विभिन्न राजघरानों द्वारा यहां घाटों का निर्माण कराया गया है। इनमें ग्वालियर घाट, जोधपुर घाट, कोटा घाट, भरतपुर घाट, जयपुर घाट शामिल हैं।

ये घाटों के नाम हैं
घाटों को प्रमुख गौ घाट, जनाना घाट, चीर घाट, बलराव घाट, हाथी सिंह जी का घाट, शेखावाटी घाट, राम घाट, राय मुकुंद घाट, गणगौर घाट, रघुनाथ घाट, बद्री घाट, भदावर राजा घाट, विश्राम घाट, नरसिंह घाट, मोदी घाट, वराह घाट, बंसीलाल घाट, एक सौ आठ महादेव घाट, चंद्र घाट, इंद्र घाट, शिव घाट, कोट तीर्थ घाट, बंगला घाट, किशनगढ़ घाट, राज घाट के नाम से जाना जाता है। सरस्वती घाट, तीजा माजी का घाट, सप्तऋषि घाट, जोधपुर घाट, बूंदी घाट, गुर्जर घाट, सीकर घाट, वल्लभ घाट, स्वरूप घाट, चौड़ी पैठी का घाट, इंद्रेश्वर महादेव घाट, सावित्री घाट, हेडगेवार घाट, ब्रह्मा घाट, अखाड़ा घाट, खींवसर माता घाट, छीनक माता घाट, भरतपुर घाट, गांधी घाट।

पुष्कर सरोवर में पूजा का महत्व
पंडित रवि शर्मा बताते हैं कि ब्रह्माजी का एकमात्र तीर्थ पुष्कर है और ब्रह्माजी को दिए गए श्राप के अनुसार उनके भक्तों की पूजा तभी सफल होगी जब भक्त उनके स्थान पर आकर पूजा करेंगे. इसीलिए अगर किसी को ब्रह्माजी की पूजा करनी है तो उसे पुष्कर आना होगा. जब तक कोई भक्त पुष्कर आकर मंदिर और सरोवर में पूजा नहीं करता, उसकी पूजा असफल मानी जाती है. मान्यता है कि भगवान ब्रह्मा जी ने इसी सरोवर के पास यज्ञ किया था, जिसके कारण इस सरोवर को मोक्ष दायक भी कहा जाता है.

ब्रह्मा जी को क्या श्राप दिया गया था?
दरअसल, पौराणिक कथाओं में माना जाता है कि एक बार ब्रह्मा जी धरती पर यज्ञ करना चाहते थे और उन्होंने अपनी पत्नी सरस्वती जी को यज्ञ में अपने साथ बैठने के लिए कहा, सरस्वती जी ने ब्रह्मा जी से कुछ समय प्रतीक्षा करने को कहा, लेकिन जब सरस्वती जी कुछ समय तक धरती पर नहीं पहुंचीं, तो ब्रह्मा जी ने यज्ञ के लिए वहीं एक ग्वालिन से विवाह कर लिया. जब सरस्वती जी यज्ञ में बैठने पहुंची और अपने स्थान पर किसी और को देखा तो क्रोधित हो गईं और ब्रह्मा जी को श्राप दे दिया कि आज के बाद इस धरती पर कहीं भी आपकी पूजा नहीं होगी, लेकिन जब सभी देवी-देवताओं ने उनसे विनती की और उनका मन शांत हुआ तो उन्होंने कहा कि हे ब्रह्मदेव इस पूरे संसार में आपकी पूजा केवल एक ही स्थान पर होगी और वह है पुष्कर।

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