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भारत की घोषणा पर चीन ने लगाई मुहर, फिर भी नहीं छंट रही धुंध

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Getty Images भारत के विदेश सचिव विक्रम मिस्री ने कहा कि दोनों देश सरहद पर पट्रोलिंग को लेकर एक समझौते पर पहुँचे हैं और चीन ने भी इसकी पुष्टि की है.

चीन से लगी सरहद पर भारतीय सैनिक 2020 से पहले जहाँ तक गश्त लगाते थे, वहाँ तक लगा पाएंगे, सोमवार को भारत के विदेश मंत्री एस जयंशकर ने तो ऐसा ही कहा था.

लेकिन अतीत में ऐसे कई वाक़ये हुए हैं, जिन्हें देखने पर लगता है कि चीन के साथ हुए समझौते ज़मीन पर सख़्ती से उतर नहीं पाते हैं.

चीन के साथ सीमा पर पिछले चार सालों से तनातनी की स्थिति है लेकिन सोमवार को भारत के विदेश सचिव विक्रम मिस्री ने कहा कि दोनों देश सरहद पर पट्रोलिंग को लेकर एक समझौते पर पहुँचे हैं.

विक्रम मिस्री को उम्मीद है कि यह समझौता डिसइंगेजमेंट की राह खोलेगा. विक्रम मिस्री की घोषणा के बावजूद ऐसे कई सवाल हैं, जिनके जवाब मिलने बाकी हैं.

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भारत ने यह घोषणा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के रूस के कज़ान में होने वाले ब्रिक्स शिखर सम्मेलन में हिस्सा लेने से ठीक पहले की.

कज़ान में 22-23 अक्तूबर को ब्रिक्स शिखर सम्मेलन हो रहा है, जहां चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग भी मौजूद होंगे और संभावना है कि भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ उनकी मुलाक़ात होगी.

मंगलवार को भारत और चीन के बीच सीमा पर पट्रोलिंग को लेकर हुए समझौते की पुष्टि चीनी विदेश मंत्रालय ने भी कर दी है.

चीन के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता लिन जियान ने इस मामले में प्रगति की पुष्टि करते हुए कहा कि सीमा से जुड़े मुद्दों पर चीन और भारत की कूटनीतिक और सैन्य स्तर पर क़रीबी बातचीत जारी है.

image Getty Images रूस में ब्रिक्स सम्मेलन हो रहा है और कयास लगाए जा रहे हैं कि यहां पीएम मोदी और राष्ट्रपति शी जिनपिंग की मुलाक़ात हो सकती है. समझौते की विस्तृत जानकारी कहां है?

इस समझौते से जुड़ी विस्तृत जानकारी अभी नहीं दी गई है और न ही चीन की तरफ़ से विस्तार में कुछ बताया गया है. चीन ने कहा है कि समाधान को प्रभावी तौर पर लागू करने के लिए चीन अगले चरण में भारत के साथ मिलकर काम करेगा. कांग्रेस पार्टी ने समझौते को लेकर विस्तृत विवरण की मांग की है.

कांग्रेस के वरिष्ठ नेता जयराम रमेश ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर लिखा, "अभी जब हम भारत और चीन के बीच हुए समझौते के विस्तृत विवरण की प्रतीक्षा कर रहे हैं, यह याद करना उचित होगा कि संसद में पिछले साढ़े चार वर्षों में एक बार भी सीमा की स्थिति पर चर्चा नहीं होने दी गई है. क्या देश नॉन-बायोलॉजिकल प्रधानमंत्री द्वारा 19 जून, 2020 को की गई इन टिप्पणियों को कभी भूल सकता है, जिसने हमारे पक्ष को बेहद कमज़ोर कर दिया है?"

हालांकि मीडिया संस्थान 'द प्रिंट' ने समझौते को लेकर एक की है.

रिपोर्ट के मुताबिक़, "रक्षा सूत्रों ने बताया कि सर्दियों में वैसे भी एलएसी पर पट्रोलिंग रोक दी जाती है. इस दौरान सैनिकों की संख्या कम कर दी जाएगी, जैसा कि पिछले चार सालों से होता आ रहा है. उन सभी इलाक़ों में पट्रोलिंग होगी, जहां 2020 से पहले होती थी. इसमें डेपसांग के अलावा पीपी10 से पीपी13 तक का इलाक़ा शामिल है. ये भी पता चला है कि महीने में दो बार पट्रोलिंग होगी और झड़प से बचने के लिए सैनिकों की संख्या 15 तक सीमित कर दी गई है."

हालांकि आधिकारिक रूप से इस रिपोर्ट में किए गए दावों की पुष्टि नहीं हुई है.

दिल्ली में जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय के चीनी अध्ययन केंद्र में एसोसिएट प्रोफ़ेसर अरविंद येलेरी कहते हैं, "सबसे ज़रूरी बात है कि दोनों तरफ़ से एक तरह का सकारात्मक रवैया देखा जा रहा है. इस तरीके की जो शुरुआती चर्चा होती है वो चुनौतीपूर्ण और कई दौर की बातचीत के बाद होती है.अभी जो बयान सामने आए हैं वो एक बड़े निर्णय के छोटे हिस्से भर हैं. हमेशा से ऐसा होता आ रहा है."

image Getty Images पैंगोंग त्सो झील का 45 किलोमीटर हिस्सा भारत में पड़ता है. जिन इलाक़ों में पट्रोलिंग रोक दी थी उनका क्या होगा?

जब चीन के साथ भारत का सीमा विवाद बढ़ा तो लद्दाख के डेपसांग, दौलत बेग ओल्डी (डीबीओ), गलवान, पैंगॉन्ग त्सो, फिंगर एरिया और डेमचोक समेत कई इलाक़े सुर्खियों में आ गए थे.

दोनों देशों के बीच सरहद को लेकर स्थिति स्पष्ट नहीं है इस कारण लाइन ऑफ एक्चुअल कंट्रोल (एलएसी या वास्तविक नियंत्रण रेखा) पर दोनों देशों के अपने-अपने दावे हैं. इस कारण भी भारत और चीन के सैनिक आमने-सामने आ जाते हैं.

बीते साल तक जिन इलाक़ों में दोनों देशों के सैनिक पीछे हटे हैं, उनमें गलवान, पैंगोंग त्सो के उत्तर और दक्षिण तट, गोगरा-हॉट स्प्रिंग्स क्षेत्र में पट्रोलिंग पॉइंट 17 और पट्रोलिंग पॉइंट 15 शामिल हैं. इन जगहों पर असैन्य 'बफ़र ज़ोन' बना दिए गए हैं.

पैंगोंग त्सो से हटने पर सहमति फ़रवरी 2021 में बन गई थी. इसी तरह गोगरा-हॉट स्प्रिंग्स क्षेत्र में पट्रोलिंग पॉइंट 17 से दोनों देशों की सेनाएं अगस्त 2021 में हट गई थीं. लेकिन उसके बाद से बातचीत के कई दौर गुज़र जाने के बाद भी डेमचोक और डेपसांग के इलाक़े को लेकर कोई समाधान नहीं निकल पाया.

डेमचोक और डेपसांग को लेकर भारत की पूर्व विदेश सचिव निरुपमा राव ने लिखी है.

उन्होंने लिखा, "एलएसी के अंतिम क्षेत्रों डेमचोक और डेपसांग में समस्या बनी हुई है और इन्हीं इलाक़ों में डिसइंगेजमेंट होगा. यह सिर्फ़ पहला क़दम है लेकिन यह प्रभावी है और इससे तनाव कम होगा. अगला क़दम डी-एस्केलेशन होगा. एलएसी के पास के क्षेत्रों में शांति सुनिश्चित करने के उपायों को गलवान से पहले के सालों में मौजूद उदाहरणों के आधार पर बढ़ाया जा सकता है. "

"यह किसी भी देश के हित में नहीं था कि इतने लंबे समय तक इतने करीबी टकराव की स्थिति में तनाव बना रहे. हालिया घटनाक्रम भविष्य के लिए सकारात्मक संकेत हैं."

डिसइंगेजमेंट का मतलब होता है किसी मोर्चे पर आमने-सामने खड़ी सेनाओं का पीछे हटना और डी-एस्केलेशन का मतलब दो देशो के बीच तनाव की स्थिति को कम करने के लिए उठाने जाने वाले क़दमों से है.

इस मामले पर अरविंद येलेरी कहते हैं, "पहले हम डेपसांग में पट्रोलिंग प्वाइंट (पीपी) 10 तक पट्रोलिंग कर सकते थे. अब समझौते के बाद उम्मीद है कि हम पीपी 13 तक पट्रोलिंग कर पाएंगे. भारत का हमेशा स्टैंड रहा है कि अगर हम बातचीत कर रहे हैं तो आप (चीन) गलवान जैसा कुछ नहीं कर सकते हैं. "

image BBC समझौते के बाद डी-मिलिटराइज़्ड 'बफर ज़ोन' का क्या होगा?

2020 के संघर्ष के बाद गलवान घाटी, पैंगॉन्ग त्सो, गोगरा और हॉट स्प्रिंग्स जैसे इलाक़ों में तीन बफर ज़ोन बनाए गए थे.

भारतीय सेना बफर ज़ोन से पहले इन इलाक़ों में गश्त करती थी लेकिन बफर ज़ोन के बाद यह बंद हो गई थी.

बफर ज़ोन वो क्षेत्र जो दो या दो से ज़्यादा देशो को अलग करता है. ये क्षेत्र अक्सर उस इलाक़े में शांति के मकसद से बनाए जाते हैं.

समझौते के बाद बफ़र ज़ोन का क्या होगा?

प्रोफ़ेसर जबिन टी जैकब शिव नादर यूनिवर्सिटी में एसोसिएट प्रोफेसर और चीनी मामलों के विशेषज्ञ हैं.

इस पर प्रोफ़ेसर जैकब कहते हैं, "मेरा मानना है कि समझौता लागू हो जाता है तो फिर बफ़र ज़ोन की ज़रूरत नहीं पड़ेगी और दोनो तरफ़ से 2020 से पहले की तरह ही गश्त शुरू हो जाएगी."

बफ़र ज़ोन को लेकर सेना प्रमुख जनरल उपेंद्र द्विवेदी ने अपनी प्रतिक्रिया दी है.

उन्होंने कहा, "हम विश्वास को बहाल करने की कोशिश कर रहे हैं. विश्वास कैसे बहाल होगा? यह तब बहाल होगा जब हम एक दूसरे को देख पाएंगे और एक-दूसरे को समझा पाएंगे. हमें एक-दूसरे को आश्वस्त करना होगा कि जो बफ़र ज़ोन बनाए गए हैं उनमें घुसपैठ नहीं कर रहे हैं."

भारत के जाने-माने सामरिक विशेषज्ञ ब्रह्मा चेलानी ने बफ़र ज़ोन का मुद्दा उठाया है.

एक निजी समाचार चैनल से बातचीत में ब्रह्मा चेलानी कहते हैं, "जो तीन बफ़र ज़ोन हैं इसका अधिकांश हिस्सा भारत में आता हैं, जिसमें 2020 तक भारतीय सेना पट्रोलिंग करती थी. इस समझौते में बफ़र ज़ोन के बारे में कोई जानकारी नहीं दी गई है. पूर्वी लद्दाख के 65 पट्रोलिंग प्वाइंट्स में से 26 पीपी पर भारत ने अपनी पहुंच खो दी है. इस नए पट्रोलिंग अरेजमेंट के तहत इन पट्रोलिंग प्वाइंट्स से जुड़ी कोई भी जानकारी नहीं दी गई है."

image Getty Images भारतीय सेना बफर ज़ोन से पहले तीन बड़े इलाक़ों में गश्त करती थी लेकिन बफर ज़ोन के बाद यह बंद हो गई थी. भारत ने अभी घोषणा क्यों की?

रूस के कज़ान में 22-23 अक्तूबर को ब्रिक्स शिखर सम्मेलन हो रहा है. कयास लगाए जा रहे हैं कि यहां पीएम मोदी और राष्ट्रपति शी जिनपिंग की मुलाक़ात हो सकती है.

जानकार इस घोषणा की टाइमिंग को लेकर सवाल उठा रहे हैं और कह रहे हैं ब्रिक्स में मोदी और पुतिन की मुलाक़ात के लिए यह भूमिका तैयार की जा रही है.

प्रोफ़ेसर जबिन टी जैकब का कहना है कि यह बहुत सामान्य बात है.

प्रोफ़ेसर जैकब कहते हैं, "साफ़ तौर पर कहूं तो हाँ, लेकिन यह सामान्य डिप्लोमैटिक प्रैक्टिस है. ऐसी बैठकों से पहले, दौरान या बाद में बड़ी घोषणाएँ की जाती हैं. इसलिए मुझे इसमें कुछ नया नहीं लगता है."

वहीं प्रोफ़ेसर अरविंद येलेरी का कहना है कि इस मुलाक़ात वाली बात को मानने के पीछे कई कारण हैं.

प्रोफ़ेसर येलेरी कहते हैं, "दो हफ़्ते पहले भी विदेश मंत्रालय की तरफ़ से कहा गया था कि दोनों देशों के बीच सीमा विवाद को लेकर चर्चा जारी है. उसके पहले भी दो बार विदेश मंत्री जयशंकर ने कहा था कि दोनों देशों के बीच सीमा को लेकर बातचीत हो रही है. रही बात ब्रिक्स की तो मेरा व्यक्तिगत तौर पर मानना है कि पिछले एक साल से चीन भी मोदी और शी जिनपिंग के बीच बातचीत के लिए सक्रिय रहा है."

image BBC दोनों तरफ जो निर्माण हुआ है उसका क्या?

गलवान से पहले एलएसी के पास दोनों ही देशों ने एक दूसरे पर निर्माण कार्य करने का आरोप लगाया था.

भारत ने तब कहा था कि अक्साई चिन में स्थित गलवान घाटी के किनारे, चीनी सेना के कुछ टेंट देखे गए हैं. इसके बाद भारत ने भी वहां फ़ौज की तैनाती बढ़ा दी. चीन का आरोप था कि भारत गलवान घाटी के पास रक्षा संबंधी ग़ैर-क़ानूनी निर्माण कर रहा है.

कई मीडिया रिपोर्ट्स में बताया गया है कि पिछले कुछ सालों में चीन ने पैंगोंग त्सो के अपनी ओर के किनारों पर सड़कों का निर्माण भी किया है.

स्वस्ति राव, अंतरराष्ट्रीय संबंधों की विशेषज्ञ हैं और मनोहर पर्रिकर इंस्टीट्यूट ऑफ़ डिफ़ेंस स्टडीज़ से जुड़ी हैं.

निर्माण को लेकर स्वस्ति हैं, "मुद्दा यह है.पिछले चार वर्षों में चीन ने इस क्षेत्र में आक्रामक रूप से बुनियादी ढांचे का विकास किया है जो कि चार साल पहले आज के स्तर की तुलना में कुछ भी नहीं था. चीनी अब तक वही कर रहे हैं जो वे कर रहे थे. उनके बुनियादी ढांचे के आधुनिकीकरण की तैयारी के विवरण में जाइए."

स्वस्ति कहती हैं कि जाहिर तौर पर निर्माण के बाद चीनी अब भारत को अन्य नियंत्रणों के साथ गश्त करने की अनुमति देने के लिए अधिक इच्छुक हैं.

वहीं निर्माण से जुड़े सवाल पर अरविंद येलेरी कहते हैं, "तनाव के दौरान अगर चीन ने हार्ड इन्फ्रास्ट्रक्चर किए हैं तो ये भारत के लिए चिंता की बात है. भारत का हमेशा से यही कहना है कि अगर बड़े स्तर पर कोई कैंप रहेगा तो इसका मतलब है कि आप वहां अपनी मौजूदगी मज़बूती से दर्ज़ करा रहे हैं. पीछे हटने के दौरान जो निर्माण रहता है भारत को उसे भी सीरियस लेना चाहिए."

हालांकि प्रोफ़ेसर जैकब का मानना है कि निर्माण से जुड़े विकास कार्य दोनों तरफ़ जारी रहेंगे बशर्ते वो एलएसी पर भारत-चीन समझौते का उल्लंघन न करते हो.

image Getty Images गलवान की झड़प से पहले एलएसी के पास दोनों ही देशों ने एक दूसरे पर निर्माण कार्य करने का आरोप लगाया था. क्या चीन पर भरोसा किया जा सकता है?

लेकिन यह पहली बार नहीं है, जब भारत ने ब्रिक्स की बैठक से पहले सीमा पर तनाव कम करने या किसी समाधान की ओर बढ़ने की घोषणा की है. इससे पहले 2017 में डोकलाम संकट के दौरान भारत ने घोषणा की थी कि चीन के साथ बातचीत से मसला सुलझ गया है. तब ब्रिक्स समिट चीन में हो रहा था और पीएम मोदी को वहीं जाना था.

भारत ख़ुद कई बार कह चुका है कि एलएसी को लेकर चीन के साथ जो समझौते हैं, उसका वह पालन नहीं करता है. ऐसे में भारत ने भले समझौते की घोषणा कर दी है लेकिन बिना किसी डिटेल की यह घोषणा है. कई विशेषज्ञों का मानना है कि चीन के लिए अभी कोई ऐसी मजबूरी नहीं है कि भारत के साथ आक्रामकता कम करे.

एस जयशंकर लगातार कहते रहे हैं कि सीमा पर शांति रहेगी तभी बाक़ी संबंध भी सामान्य रहेंगे लेकिन चीन के साथ चीज़ें बिल्कुल उलट हो रही हैं. सीमा पर भले भारत के साथ तनाव है लेकिन दोनों देशों के बीच द्विपक्षीय व्यापार 100 अरब डॉलर पार कर चुके हैं और यह लगातार बढ़ता जा रहा है. ऐसे में तनाव के बावजूद चीन को भारत से कोई नुक़सान नहीं हो रहा है.

बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित

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