कोलकाता के सबसे मशहूर आरजी कर मेडिकल कॉलेज में ट्रेनी डॉक्टर से रेप और हत्या के बाद शुरू हुआ जूनियर डॉक्टरों का प्रदर्शन लगातार जारी है.
इस मेडिकल कॉलेज के कैंपस में ही ट्रेनी महिला डॉक्टर का शव 9 अगस्त की सुबह सेमिनार हॉल में मिला था. इस घटना के विरोध में तब से ही डॉक्टरों का आंदोलन चल रहा है.
पिछले 11 दिनों से कुछ डॉक्टर कोलकाता के प्रमुख इलाक़े में भूख हड़ताल और आमरण अनशन पर बैठे हुए हैं. जूनियर डॉक्टरों को अब अपने वरिष्ठ सहयोगियों का भी समर्थन मिल रहा है.
अब तक लगभग 77 सीनियर डॉक्टरों ने सामूहिक रूप से सरकार को अपना इस्तीफ़ा भेज दिया है. राज्य में चिकित्सा सेवाएं पूरी तरह से चरमरा गई हैं.
इस आंदोलन के बीच मुख्यमंत्री ममता बनर्जी कई बार इन डॉक्टरों से आंदोलन ख़त्म कर काम पर लौट आने की अपील कर चुकी हैं.
BBC बीबीसी हिंदी के व्हॉट्सऐप चैनल से जुड़ने के लिए ये भी पढ़ेंइस पूरे मामले की निगरानी कर रहे सुप्रीम कोर्ट ने भी डॉक्टरों से काम पर लौटने की अपील की थी.
सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि अगर वे (डॉक्टर) तय सीमा के अंदर अपनी ड्यूटी पर लौट आते हैं, तो उनके ख़िलाफ़ किसी भी तरह की क़ानूनी या प्रशासनिक कार्रवाई नहीं की जाएगी.
लेकिन डॉक्टर अपने आंदोलन पर न सिर्फ़ अड़े रहे, बल्कि ये आंदोलन और भी व्यापक हो गया.
28 अगस्त को अपने संबोधन में मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने मंच से आश्वासन दिया कि डॉक्टरों पर कोई क़ानूनी कार्रवाई नहीं की जाएगी.
इसके अलावा, अपनी प्रेस कॉन्फ्रेंस में भी उन्होंने यही बात दोहराई. एक दिन अचानक, वे कोलकाता के साल्ट लेक इलाके में स्थित स्वास्थ्य भवन भी पहुंच गईं, जहां जूनियर डॉक्टर आंदोलन कर रहे थे.
वहां भी जाकर उन्होंने डॉक्टरों से काम पर लौटने की अपील की.
राज्य सचिवालय में आयोजित पत्रकार वार्ता में ममता बनर्जी ने कहा, "सुप्रीम कोर्ट का निर्देश है कि डॉक्टरों को अपने काम पर वापस लौटना होगा."
उन्होंने कहा, "सुप्रीम कोर्ट के निर्देश की सीमा समाप्त होने के बावजूद, हमने डॉक्टरों के खिलाफ़ किसी भी प्रकार की अनुशासनात्मक कार्यवाही नहीं की. कभी-कभी हमें चीज़ों को बर्दाश्त करना पड़ता है."
राज्य सरकार का कहना है कि जूनियर डॉक्टरों के आंदोलन के दौरान मरीज़ों को उचित चिकित्सा नहीं मिल पा रही है, जिससे मरीजों को परेशानी का सामना करना पड़ रहा है.
ममता बनर्जी बार-बार दोहराती रही हैं कि वे किसी भी आंदोलनकारी डॉक्टर पर कोई कार्रवाई नहीं कर रही हैं.
ये भी पढ़ेंतृणमूल कांग्रेस छात्र परिषद के सम्मेलन में ममता बनर्जी ने साफ़ किया था, "राज्य सरकार के पास कई विकल्प हैं. इनमें से एक है 'एसेंशियल सर्विसेज़ मेंटेनेंस एक्ट' या 'एस्मा', और दूसरा है प्राथमिकी दर्ज करना. हम दोनों ही नहीं चाहते."
उन्होंने कहा, "मैं खुद छात्र आंदोलन की उपज हूं और आंदोलन करते हुए आज मुख्यमंत्री पद तक पहुंची हूं. मैं डॉक्टरों की मांगों का समर्थन भी करती हूं और इंसाफ़ भी मांगती हूं."
राजनीतिक और सामाजिक विश्लेषक सुभाशीष मित्रा कहते हैं कि पूर्व में भी कई ऐसे आंदोलन हुए, जब तत्कालीन मुख्यमंत्रियों ने प्रदर्शनकारियों पर दंडात्मक कार्रवाई करने से परहेज़ किया.
उन्होंने पश्चिम बंगाल के तत्कालीन मुख्यमंत्री बिधान चंद्र रॉय का उदाहरण दिया और कहा कि उस समय भी उन्होंने आंदोलन कर रहे छात्रों को वार्ता के लिए आमंत्रित किया था और सचिवालय, यानी ‘राइटर्स बिल्डिंग’, में उनके साथ बैठकर आंदोलन समाप्त करने के लिए समाधान खोजा था.
मित्रा बताते हैं, “उस समय भी सरकार के पास जबरन आंदोलन समाप्त करवाने के विकल्प थे, लेकिन ऐसा नहीं किया गया.”
उन्होंने बताया, “दूसरा उदाहरण हमें साल 1983 में देखने को मिला जब वाम मोर्चे की सरकार थी. उन्होंने भी वार्ता के ज़रिए हल निकालने की कोशिश की थी. राज्य के पास कई विकल्प होते हैं, मगर बंगाल में विरोध करने की गुंजाइश हमेशा से रखी गई है.”
ये भी पढ़ेंवहीं, तृणमूल कांग्रेस के प्रवक्ता जय प्रकाश मजूमदार ने बीबीसी से कहा कि इसमें कोई शक नहीं है कि इस समय, अगस्त महीने से, पूरे प्रदेश में चिकित्सा व्यवस्था चरमरा गई है और आम लोगों को इसकी वजह से बेहद परेशानी का सामना करना पड़ रहा है.
वो कहते हैं, "इसके बावजूद भी सरकार 'उदारता दिखा रही है', क्योंकि पीड़ित के परिवार और आंदोलन कर रहे डॉक्टरों के लिए मुख्यमंत्री के दिल में 'करुणा' है."
मजूमदार कहते हैं, "दूसरे राज्यों में अगर ऐसा आंदोलन हो रहा होता, तो अब तक सरकारों ने क्या कुछ नहीं किया होता. मगर यहां ऐसा नहीं है."
उन्होंने कहा, "ऐसा भी नहीं है कि राज्य सरकार के पास विकल्प नहीं हैं. एसेंशियल सर्विसेज़ मेंटेनेंस एक्ट (एस्मा) के साथ कई कानून ऐसे हैं, जिन्हें लागू कर डॉक्टरों को काम पर लौटने के लिए बाध्य किया जा सकता था. लेकिन मुख्यमंत्री ने वार्ता का दरवाजा खुला रखा."
उन्होंने कहा, "आंदोलन लगभग समाप्त भी हो गया था, लेकिन राजनीतिक दलों ने इसे पीछे से हवा देना शुरू कर दिया."
ये भी पढ़ेंकोलकाता से प्रकाशित प्रमुख बांग्ला अखबार आनंद बाजार पत्रिका के पूर्व पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक निर्मल्या मुखर्जी इस बात से सहमत नहीं हैं.
वे कहते हैं कि अगर राज्य सरकार ने आंदोलन कर रहे डॉक्टरों के ख़िलाफ़ कोई कार्रवाई नहीं की, तो "वो ममता बनर्जी और उनकी सरकार की राजनीतिक मजबूरी है."
जानकार मानते हैं कि आक्रामक राजनीति के लिए जानी जाने वाली ममता बनर्जी इस बार पूरी तरह 'बैकफुट' पर हैं.
मुखर्जी कहते हैं कि डॉक्टरों पर कोई दंडात्मक कार्रवाई न होने का सबसे प्रमुख कारण ये है कि आंदोलन में आम लोग भी शामिल हैं और डॉक्टरों के प्रति उनमें सहानुभूति है.
इसके अलावा, राजनीतिक दलों ने भी इस स्थिति को भांपकर आंदोलन को बिना अपने झंडे के समर्थन दिया है.
उनका कहना है, "अगर राजनीतिक दल झंडों के साथ आंदोलन में शामिल होते, तो ममता बनर्जी के लिए इस आंदोलन को कुचलने में ज़्यादा समय नहीं लगता."
उन्होंने कहा, "वैसे भी तृणमूल कांग्रेस नगर निगम और जिला परिषद चुनावों से पहले जनता को नाराज़ करने की कोई गलती नहीं करना चाहेगी. और 2026 में विधानसभा चुनाव भी होने वाले हैं."
मुखर्जी, जय प्रकाश मजूमदार के इस दावे से सहमत नहीं हैं कि ममता बनर्जी ने ‘करुणा’ दिखाई है.
वो कहते हैं, "ऐसा करके ममता बनर्जी ये जताना चाहती हैं कि आंदोलन करने वाले लोग कमज़ोर हैं और सरकार ताकतवर है, जो बहुत कुछ कर सकती है लेकिन नहीं कर रही. वे चाहती हैं कि आंदोलन इसी तरह चलता रहे और धीरे-धीरे अपने आप खत्म हो जाए."
ये भी पढ़ेंअब भी कोलकाता और प्रदेश के विभिन्न इलाकों में जुलूस निकाले जा रहे हैं. मंगलवार को आंदोलन कर रहे डॉक्टरों ने ‘द्रोह कार्निवल’ का आयोजन किया, जो राज्य सरकार के ‘कार्निवल’ के साथ-साथ चला.
कोलकाता पुलिस ने इसकी अनुमति नहीं दी थी, लेकिन हाई कोर्ट ने आंदोलनकारियों को इसकी अनुमति दे दी.
इससे पहले, 14 और 15 अगस्त की दरमियानी रात को कोलकाता शहर में महिलाओं ने 'रीक्लेम द नाइट' का आह्वान किया, जिसके तहत पूरे शहर के अलग-अलग हिस्सों में महिलाएं आधी रात के बाद सड़कों पर उतर आईं और ‘रात पर दखल’ किया.
ये आंदोलन सिविल सोसाइटी की कार्यकर्ताओं के आह्वान पर किया गया था, जिसमें "महिलाओं का अधिकार" फिर से स्थापित करने की अपील की गई थी.
इस आह्वान की वजह से पूरा कोलकाता शहर रात को सड़कों पर उमड़ पड़ा था. कुछ जानकार इसे ‘राज्य सरकार के लिए संदेश’ के रूप में भी देख रहे हैं.
उसी रात आरजी कर मेडिकल कॉलेज एंड हॉस्पिटल में जूनियर डॉक्टरों के धरना स्थल पर एक ‘अज्ञात भीड़’ ने हमला कर दिया था.
इस हमले में न केवल धरना स्थल, बल्कि अस्पताल के इमरजेंसी वार्ड और घटनास्थल पर भी तोड़फोड़ के आरोप हैं. ऐसा सीबीआई ने सुप्रीम कोर्ट में पेश की गई अपनी रिपोर्ट में कहा.
इसके बाद प्रदेश की राजनीति गरमा गई और मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के नेतृत्व वाली तृणमूल कांग्रेस की सरकार ने विधानसभा का विशेष सत्र बुलाकर "अपराजिता बिल" पेश किया.
इस बिल को सर्वसम्मति से पारित भी कर दिया गया, जिसमें संगीन बलात्कार और हत्या के मामलों में फांसी की सज़ा का प्रावधान किया गया है.
साथ ही बलात्कार की घटनाओं की जांच तय समयसीमा के अंदर करने की भी बात कही गई है.
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