सुप्रीम कोर्ट में वक़्फ़ संशोधन क़ानून को लेकर जारी सुनवाई के पहले दो दिनों में भारत सरकार कुछ पीछे हटती दिखाई दी.
सरकार ने अदालत से कह दिया कि वह अगली सुनवाई होने तक इस क़ानून के कई अहम प्रावधानों को लागू नहीं करेगी.
केंद्र सरकार ने गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट से कहा कि वक़्फ़ संशोधन क़ानून के कई प्रावधानों को अगली सुनवाई तक लागू नहीं किया जाएगा.
इससे एक दिन पहले ही बुधवार को सुप्रीम कोर्ट ने वक़्फ़ संशोधन क़ानून के ख़िलाफ़ दायर याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए संकेत दिए थे कि वह कुछ प्रावधानों पर स्टे लगा सकता है.
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इससे पहले कि अदालत कोई आदेश पारित करती, बुधवार को सरकार की तरफ़ से पेश हो रहे महाधिवक्ता तुषार मेहता ने एक दिन की मोहलत मांगी और अगले दिन अदालत को आश्वासन दिया कि वक़्फ़ संशोधन क़ानून के कुछ प्रावधानों को फ़िलहाल अमल में नहीं लाया जाएगा.
तुषार मेहता ने अदालत से कहा कि अगली सुनवाई तक सरकार वक़्फ़ बोर्ड में ग़ैर मुसलमान सदस्यों की नियुक्ति नहीं करेगी.
वक़्फ संपत्तियों के चरित्र को भी नहीं बदला जाएगा. इनमें 'इस्तेमाल के आधार' पर वक़्फ़ घोषित संपत्तियां भी शामिल होंगी.
इस मामले में सुप्रीम कोर्ट में अगली सुनवाई अब 5 मई को होगी. सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में अभी तक किसी तरह का स्थगन आदेश या स्टे ऑर्डर नहीं दिया है.

सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के दौरान वक़्फ़ संशोधन क़ानून के कई प्रावधानों को लेकर क़ानूनी और संवैधानिक चिंताएं ज़हिर की गई थीं.
इस क़ानून का विरोध कर रहे लोगों का तर्क है कि वक़्फ़ क़ानून में नए संशोधन मुसलमानों की संपत्तियों के प्रबंधन में ग़ैर मुसलमानों के दख़ल को बढ़ावा देगा. कुछ ने मुसलमानों के संवैधानिक अधिकारों के हनन की चिंता भी ज़ाहिर की है.
बुधवार को सुनवाई के दौरान चीफ़ जस्टिस संजीव खन्ना ने कहा था कि अदालत कुछ अंतरिम आदेश पारित कर सकती है.
पहला, ये कि जो संपत्तियां वक़्फ़ घोषित हैं उन्हें डीनोटिफ़ाई नहीं किया जाएगा. अदालत ने वक़्फ़ काउंसिल और वक़्फ़ बोर्ड में ग़ैर मुसलमान सदस्यों की भर्ती को रोकने के भी संकेत दिए थे.
गुरुवार को सरकार की तरफ़ से पेश महाधिवक्ता तुषार मेहता ने अदालत में जवाब देने के लिए सात और दिनों का समय मांगा था.
अदालत में वक़्फ़ संशोधन क़ानून के ख़िलाफ़ दस से अधिक याचिकाएं दायर हुई हैं.
केंद्र सरकार के मुख्य प्रावधानों पर फ़िलहाल रोक लगाने को लेकर याचिकाकर्ताओं का कहना है कि सरकार को अंदाज़ा हो गया था कि अदालत स्टे ऑर्डर दे सकती है, ऐसे में सरकार ने समय लिया है.
तृणमूल कांग्रेस की सांसद और याचिकाकर्ता महुआ मोइत्रा कहती हैं, "सरकार को ये संकेत मिल गए थे कि अदालत स्थगन आदेश पारित कर सकती है, ऐसे में सरकार ने समय लेने के लिए अदालत से कह दिया है कि वो फिलहाल प्रावधानों को लागू नहीं करेगी."
वहीं याचिकाकर्ताओं की तरफ़ से अदालत में पेश हो रहे अधिवक्ता कपिल सिब्बल कहते हैं, "सरकार ने समय हासिल करने के लिए अदालत से कहा कि वह प्रावधानों को लागू नहीं करेगी. अगर सरकार अदालत में ये प्रस्ताव ना देती तो अदालत आदेश पारित कर देती. 13 मई को चीफ़ जस्टिस संजीव खन्ना भी रिटायर हो रहे हैं."
विश्लेषक भी मान रहे हैं कि सरकार ने अदालत के रुख़ को भांप लिया था और क़ानूनी प्रावधानों पर स्टे लगने से होने वाली असहज स्थिति से बचने के लिए ख़ुद ही पीछे हट गई.
क़ानूनी और संवैधानिक मामलों के जानकार प्रोफ़ेसर फ़ैज़ान मुस्तफ़ा कहते हैं, "महाधिवक्ता तुषार मेहता ने अदालत में अपने अनुभव का इस्तेमाल किया और जवाब देने के लिए एक दिन का समय मांग लिया. अगले दिन उन्होंने सरकार की तरफ़ से कह दिया कि सरकार ख़ुद ही उन प्रावधानों को लागू नहीं करेगी जिन पर अदालत का विरोध हो सकता है."
फ़ैज़ान मुस्तफ़ा कहते हैं कि अगर अदालत पहले ही दिन क़ानून के कुछ प्रावधानों पर स्टे लगा देती तो सरकार के लिए स्थिति शर्मनाक हो सकती थी.
मुस्तफ़ा कहते हैं, "इस मामले में ऐसी संभावना कम ही है कि अदालत कोई स्टे लगाएगी. ये हो सकता है कि सरकार अपनी तरफ़ से ही कुछ छूट दे दे. एक तरह से कहा जा सकता है कि याचिकाकर्ताओं को पहले राउंड में कुछ हद तक कामयाबी मिली है."
महुआ मोइत्रा भी अदालत में गुरुवार को हुए घटनाक्रम को याचिकाकर्ताओं के लिए एक बड़ी कामयाबी के रूप में देख रही हैं.
वो कहती हैं, "वक़्फ़ संशोधन विधेयक पारित होते ही यूपी जैसे बीजेपी शासित राज्यों में वक़्फ़ संपत्तियों को लेकर प्रशासनिक गतिविधियां शुरू हो गई थीं. लेकिन अब सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के बाद ये साफ़ हो गया है कि सरकारें या अधिकारी सुप्रीम कोर्ट का निर्णय आने तक कुछ नहीं कर पाएंगे."
वहीं भारतीय जनता पार्टी का रुख़ अलग है. भारतीय जनता पार्टी की प्रवक्ता शाज़िया इल्मी कहती हैं कि केंद्र सरकार संसद में पारित वक़्फ़ संशोधन विधेयक को पूरी तरह लागू करने के लिए प्रतिबद्ध है.
शाज़िया इल्मी कहती हैं, "सरकार अदालत में अपना पक्ष रखेगी. ये विधेयक बहुत सोच समझकर ग़रीब मुसलमानों के हितों को ध्यान में रखकर लाया गया है. सरकार इससे पीछे नहीं हटेगी."
शाज़िया इल्मी कहती हैं, "भारत में चुनिंदा मुसलमान ही वक़्फ़ संपत्तियों से फ़ायदा उठा रहे हैं और बड़ी आबादी, ख़ासकर ग़रीब लोगों को इनका फ़ायदा नहीं मिल पा रहा है. मुसलमानों के सबसे अमीर और रसूख़दार लोग, जो राजनीतिक रूप से भी असरदार हैं और उच्च जातियों से आते हैं, वहीं वक़्फ़ संपत्तियों से फ़ायदा उठा रहे हैं. वक़्फ़ संशोधन का मक़सद ग़रीब मुसलमानों को उनका हक़ दिलाना है. "
अदालत ने अब इस मामले में केंद्र सरकार, राज्य सरकारों और वक़्फ़ बोर्डों से सात दिन के भीतर जवाब देने के लिए भी कहा है.
अदालत ने यह भी निर्देश दिया कि प्रतिवादियों के उत्तर/प्रतिक्रिया पर जवाबी हलफ़नामा इसके निर्देश की तारीख़ के पांच दिनों के भीतर दायर किया जा सकता है.
महाधिवक्ता तुषार मेहता ने अदालत को ये आश्वासन भी दिया कि अगर कोई राज्य बोर्ड इस बीच, किसी को सदस्य नामित कर देता है तो उसे शून्य माना जाएगा.
महाधिवक्ता ने अदालत को ये भरोसा भी दिया कि इस मामले की सुनवाई के दौरान यथास्थिति बरक़रार रखी जाएगी.

केंद्र सरकार का अदालत को प्रावधानों को लागू ना करने का भरोसा देने से ऐसा लग सकता है कि सरकार की ये सहमति सुलहपूर्ण है. लेकिन विश्लेषक मानते हैं कि पीछे हटना सरकार की रणनीति भी हो सकती है.
फ़ैज़ान मुस्तफ़ा कहते हैं, "अगर अदालत से स्टे आता तो इससे सरकार की छवि को चोट पहुंच सकती थी. सरकार ने रणनीतिक क़दम उठाया है और उसे जवाब दाख़िल करने के लिए समय भी मिल गया है."
वहीं वक़्फ़ संशोधन क़ानून के आलोचक तर्क देते हैं कि अधिनियम के प्रावधान, जैसे कि "इस्तेमाल से वक़्फ़ " को हटाना और गैर-मुस्लिम सदस्यों को बोर्ड में शामिल करने जैसे क़दम के पीछे सरकार की मंशा वक़्फ़ संपत्तियों पर नियंत्रण स्थापित करने की है.
महुआ मोइत्रा कहती हैं, "मुसलमानों की धार्मिक स्वतंत्रता और स्वायत्तता पर ख़तरा है. उनकी संपत्तियों पर ख़तरा है."
बीजेपी प्रवक्ता शाज़िया इल्मी इन तर्कों को ख़ारिज करते हुए कहती हैं, "सरकार साफ़ नीयत से ग़रीब मुसलमानों को फ़ायदा पहुंचाने के लिए वक़्फ़ क़ानून को लाई है. इससे मुसलमानों की संपत्तियों को नहीं बल्कि इन संपत्तियों पर क़ब्ज़ा कर निजी इस्तेमाल करने वाले लोगों को ख़तरा है और यही लोग इस विधेयक से परेशान हैं."
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