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रूस पर जयशंकर ने जो कहा, क्या वह भारत के 'डर' को दिखाता है?

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Getty Images भारत के विदेश मंत्री एस जयशंकर ने कहा है कि रूस एशिया की तरफ़ झुक रहा है और भारत को विकल्प मुहैया कराना चाहिए

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी क़रीब तीन महीने पहले आठ जुलाई को रूस गए थे. तीन महीने बाद नरेंद्र मोदी एक बार फिर से रूस में हैं.

इस बार पीएम मोदी ब्रिक्स समिट में शामिल होने गए हैं. भारत के लिए रूस कितना अहम है, ये इस बात से भी पता चलता है कि मोदी इस साल दो बार रूस जा चुके हैं.

पीएम मोदी के रूस जाने से ठीक पहले सोमवार को भारत के विदेश मंत्री एस जयशंकर ने भी विस्तार से बताया कि रूस की अहमियत इतनी क्यों है?

एस जयशंकर ने एनडीटीवी वर्ल्ड समिट में कहा, ''अगर आप इतिहास पर नज़र दौड़ाएं तो 1947 में भारत की आज़ादी के बाद से सोवियत यूनियन या रूस ने ऐसा कुछ भी नहीं किया, जिससे भारत के हितों पर नकारात्मक असर पड़ा हो. मुझे लगता है कि इस बात से कोई भी असहमत नहीं होगा. यह बड़ा बयान है क्योंकि दुनिया में ऐसा कोई भी देश नहीं है, जिसके लिए इतना बड़ा बयान दिया जा सके.''

जयशंकर ने कहा, ''अभी रूस की स्थिति बिल्कुल अलग है. पश्चिम के साथ रूस का संबंध पटरी से उतरा हुआ है. अभी एक ऐसा रूस है जो एशिया की ओर ज़्यादा झुका हुआ है.ऐसे में हमें ख़ुद से पूछना चाहिए कि रूस अगर एशिया की तरफ़ ज़्यादा झुक रहा है तो एशिया में क्या उसके पास ज़्यादा विकल्प नहीं होने चाहिए? और एक एशियाई देश के रूप में क्या हमें एशिया में कुछ ऐसा नहीं करना चाहिए जो हमारे राष्ट्र के हित में हो?''

जयशंकर ने कहा, ''स्पष्ट है कि रूस में प्राकृतिक संसाधनों की भरमार है. दूसरी तरफ़ भारत को विकास के लिए इन संसाधनों की ज़रूरत है. लोग रूस के तेल की बात करते हैं, लेकिन बात केवल तेल की नहीं है. कोयला, उर्वरक और मेटल जैसी कई चीज़ें हैं. रूस के साथ आर्थिक संबंध बढ़ाने के कई कारण हैं.''

image Getty Images एस जयशंकर का कहना है कि रूस ने भारत के हितों के ख़िलाफ़ कभी काम नहीं किया रूस पर जयशंकर का भरोसा

भारतीय विदेश मंत्री ने कहा, ''अगर आप यूरेशियाई भूभाग को देखें तो रूस, चीन और भारत तीन बड़े देश हैं. तीनों देशों के आपसी अंतरराष्ट्रीय संबंध हैं. रूस हमारे लिए रणनीतिक और आर्थिक दोनों लिहाज से ठीक है.''

एस जयशंकर ने बता दिया कि रूस ऐतिहासिक, जियोपॉलिटिक्स, सामरिक और आर्थिक रूप से भारत के लिए क्यों ज़रूरी है.

24 फ़रवरी 2022 को जब यूक्रेन पर रूस ने हमला किया तब से पश्चिमी देशों का दबाव था कि भारत रूस के साथ अपने संबंधों को सीमित करे. लेकिन भारत ने पश्चिम के दबाव में झुकने से इनकार कर दिया और रूस के साथ संबंधों को और विस्तार दिया. रूस और भारत ने 2030 तक 100 अरब डॉलर तक द्विपक्षीय व्यापार बढ़ाने का लक्ष्य रखा है.

वित्तीय वर्ष 2024 में भारत और रूस का द्विपक्षीय व्यापार 65.6 अरब डॉलर तक पहुँच गया था. दोनों देशों के द्विपक्षीय व्यापार में यह साल दर साल 33 प्रतिशत की वृद्धि है.

यूक्रेन पर रूस के हमले से पहले रूस-भारत का द्विपक्षीय व्यापार महज 10.1 अरब डॉलर का था. दोनों देशों के बीच व्यापार में बढ़ोतरी तब शुरू हुई जब रूस ने भारत को फ़रवरी 2022 के बाद डिस्काउंट पर तेल देना शुरू किया था. रूस से भारत के बढ़ते व्यापार को लेकर पश्चिम के देश आपत्ति जताते रहे लेकिन भारत पर इसका कोई असर नहीं पड़ा.

यूक्रेन और रूस में युद्ध छिड़ने के बाद से भारत के लिए यह चुनौती रही है कि वह पश्चिम और रूस दोनों का भरोसा एक साथ कैसे हासिल करे.

image Getty Images भारत के विदेश मंत्री एस जयशंकर के साथ अमेरिकी विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकन भारत का डर

रूस भारत के लिए अहम है लेकिन रूस को लेकर भारत का एक डर भी है. डर है- रूस का चीन के क़रीब जाना.

एस जयशंकर ने यह बात कही भी कि रूस एशिया की तरफ़ झुक रहा है, ऐसे में रूस के पास एशिया में क्या विकल्प नहीं होने चाहिए?

यानी जयशंकर के मन में भी यह डर है कि रूस का एशिया की ओर झुकना चीन की तरफ़ झुकना न बन जाए. अगर ऐसा होता है तो यह भारत के हितों के लिए किसी भी लिहाज से ठीक नहीं होगा.

रूस और चीन की बढ़ती रणनीतिक साझेदारी से भारत की चिंता बढ़ती है तो यह बहुत ही स्वाभाविक है. रूस और चीन के बीच बढ़ते द्विपक्षीय दौरे, बढ़ता ट्रेड और बढ़ती साझेदारी पर भारत चुप नहीं रह सकता है. रूस की साझेदारी केवल चीन से ही नहीं एशिया में बांग्लादेश पाकिस्तान और म्यांमार से भी बढ़ रहा है.

जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी में हैपीमोन जैकब अंतरराष्ट्रीय अध्ययन केंद्र में असोसिएट प्रोफ़ेसर हैं. 14 जुलाई को जैकब ने अंग्रेज़ी अख़बार हिन्दुस्तान टाइम्स में लिखा था, ''रूस का भारत के पड़ोसियों से साझेदारी बढ़ेगी तो इसका फ़ायदा अप्रत्यक्ष रूप से चीन को मिल सकता है और चीन दक्षिण एशिया में अपना प्रभाव और बढ़ा सकता है. इसे दूसरे रूप में भी देख सकते हैं. अगर रूस और चीन भारत के पड़ोसियों के साथ सक्रियता बढ़ाते हैं तो इससे भारत के हित प्रभावित होंगे.''

जैकब ने लिखा है, ''अगर व्यापक रूप में देखें तो रूस-भारत संबंधों पर चीन का अजीब असर है. चीन के कारण भारत रूस से दूर नहीं जाता है. भारत को लगता है कि अगर रूस से उसकी दूरी बढ़ी तो कहीं पुतिन पूरी तरह से चीन के साथ ना हो जाएं. और चीन के कारण ही भारत रूस पर भी निर्भर नहीं रहना चाहता है. भारत को लगता है कि अगर चीनी चुनौती बढ़ी तो अन्य साझेदारों का होना ज़रूरी है. भारत के ख़िलाफ़ चीन की आक्रामकता के मामले में रूस कितना साथ देगा, इसे लेकर भारत ख़ुद को आश्वस्त नहीं कर सकता है.''

image Getty Images रूसी विदेश मंत्री सेर्गेई लावरोफ़ के साथ भारतीय विदेश मंत्री भारत के डर के कारण

जैकब ने लिखा है, ''भारत बार-बार आश्वस्त करता रहता है कि अमेरिका के साथ उसकी क़रीबी रूस के हितों के ख़िलाफ़ नहीं जाएगी. भारत ने रूस के मामले में रेडलाइन बना ली है और इसी का नतीजा है कि यूक्रेन पर हमले के मामले में भारत ने रूस की निंदा नहीं की.''

''दूसरी तरफ़ रूस ने भी चीन के साथ बढ़ती दोस्ती के बावजूद भारत से क़रीबी टूटने नहीं दी. रूस को लंबी अवधि के लिए चीन से चुनौतियां मिल रही हैं लेकिन तात्कालिक फ़ायदे के लिए रूस उन चुनौतियों की अनदेखी कर रहा है.''

''दूसरी तरफ़ भारत लंबी अवधि के लिए अमेरिका से हितों को देख रहा है लेकिन रूस से तात्कालिक फ़ायदा है. जिस तरह भारत ने रूस को लेकर अमेरिका से अपनी हद तय की है, उसी तरह रूस ने भी भारत के मामले में चीन से हद तय की है.''

डॉ राजन कुमार जेएनयू में रूसी और मध्य एशिया अध्ययन केंद्र में असोसिएट प्रोफ़ेसर हैं. राजन कुमार कहते हैं कि चीन का भारत और रूस के संबंध में ऐतिहासिक रूप से असर रहा है.

राजन कुमार कहते हैं, ''जयशंकर का यह कहना कि भारत को चाहिए वह एशिया में रूस को विकल्प मुहैया कराए तो यह भारत का डर ही दिखाता है कि कहीं रूस पूरी तरह से चीन के पाले में न चला जाए. भारत का एक डर यह भी है कि एशिया में रूस की क़रीबी चीन से तो है ही कहीं पाकिस्तान से भी न बढ़ जाए. ऐसे में चीन पाकिस्तान और रूस की तिकड़ी बन सकती है.''

डॉ राजन कुमार कहते हैं, ''चीन और पाकिस्तान के साथ भारत की जंग हुई. चीन के मामले में रूस तटस्थ रहा लेकिन पाकिस्तान के मामले में रूस भारत के साथ रहा. अमेरिका पाकिस्तान के मामले में भारत के साथ नहीं था और चीन के मामले में भी कुछ कर नहीं पाया. ऐसे में भारत की कोशिश यही है कि रूस कम से कम यही नीति जारी रखे. लेकिन दुनिया तेज़ी से बदल रही है. आपसी हित कब टकरा जाएं, कोई जानता नहीं है.

image Getty Images एस जयशंकर यूक्रेन पर रूसी हमले के बाद से पश्चिमी देशों की नीतियों पर आक्रामक रहे हैं रूस के साथ भारत की हद

2023 में चीन और रूस का द्विपक्षीय व्यापार 240.1 अरब डॉलर का था. दोनों देशों के बीच ऐतिहासिक रूप से यह रिकॉर्ड द्विपक्षीय कारोबार था. 2021 में दोनों देशों का द्विपक्षीय व्यापार 146.89 अरब डॉलर था और यह अपने-आप में रिकॉर्ड था. 2014 में चीन और रूस के बीच द्विपक्षीय कारोबार महज़ 95.3 अरब डॉलर का था.

भारत और रूस के 65 अरब डॉलर की तुलना में चीन और रूस के 240 अरब डॉलर बहुत ज़्यादा है. ऐसे में भारत के लिए चुनौती और बड़ी हो गई है कि रूस को अपने साथ कैसे बनाए रखे.

चीन और अमेरिका के साथ भारत के संबंधों में रूस वाला भरोसा नहीं है. इसके बावजूद चीन और अमेरिका से भारत का द्विपक्षीय व्यापार 100 अरब डॉलर के पार है.

दूसरी तरफ़ रूस के साथ भारत का भरोसा ऐतिहासिक रहा है लेकिन 2021 तक दोनों देशों के बीच द्विपक्षीय व्यापार महज 10 अरब डॉलर का था. अभी जो व्यापार बढ़ा है, उसमें ऊर्जा का सबसे बड़ा हिस्सा है. यानी भारत रूस से तेल ख़रीद रहा है, इसलिए व्यापार का आकार बढ़ा है.

कार्नेगी मॉस्को थिंक टैंक के निदेशक रहे दिमित्री त्रेनिन ने 2021 में मॉस्को टाइम्स में एक लेख लिखा था. लेख में दिमित्री त्रेनिन ने लिखा था, ''भारत की 85 प्रतिशत अर्थव्यवस्था अब निजी हाथों में है जबकि भारत और रूस के आर्थिक संबंध दोनों देशों की सरकारों के बीच समझौतों पर टिका है.''

''1991 में जब सोवियत संघ का पतन हुआ तब से ही भारत के साथ कारोबारी संबंध सतह पर आ गया था. सोवियत संघ के टाइम में भारत तीसरा सबसे बड़ा कारोबारी साझेदार था लेकिन 2021 में भारत रूस का 25वें नंबर का कारोबारी साझीदार था.''

बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित

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