कोझिकोड, 26 अप्रैल . भारतीय ऐतिहासिक अनुसंधान परिषद (आईसीएचआर) के पूर्व अध्यक्ष एमजीएस नारायणन का शनिवार को निधन हो गया. वह उम्र संबंधी समस्याओं से पीड़ित थे और कुछ समय से बीमार चल रहे थे.
नारायणन ने 93 वर्ष की उम्र में अंतिम सांस ली, उनका अंतिम संस्कार आज ही किया जाएगा. केरल के रहने वाले नारायणन ने प्रदेश के एतिहासिक अध्ययनों को आकार देने में अपनी अहम भूमिका निभाई.
साल 1976 से 1990 तक वह कालीकट विश्वविद्यालय के विभागाध्यक्ष रहे और 2001 से 03 तक आईसीएचआर के प्रमुख रहे. नारायणन ने पुस्तकालय और केरल इतिहास और संस्कृति का संग्रहालय स्थापित करने में मदद की. उनके प्रयासों से छात्रों के बीच इतिहास को लेकर दिलचस्पी बढ़ी.
एमजीएस का जन्म 20 अगस्त, 1932 को पोन्नानी में हुआ था. कोझिकोड और त्रिशूर में प्रारंभिक शिक्षा प्राप्त करने के बाद उन्होंने मद्रास क्रिश्चियन कॉलेज से इतिहास में स्नातकोत्तर किया और फिर साल 1973 में केरल विश्वविद्यालय से पीएचडी की उपाधि प्राप्त की. उनके शोध प्रबंध को कई इतिहासकारों ने सबसे सक्षम और सबसे विस्तृत भारतीय शोध प्रबंधों में से एक के रूप में उच्च दर्जा दिया था.
1982-1985 के दौरान वह भारतीय इतिहास कांग्रेस के महासचिव रहे और 1991 में मास्को विश्वविद्यालय के ओरिएंटल अध्ययन संस्थान में विजिटिंग फेलो थे. 1990-1992 के दौरान वह भारतीय ऐतिहासिक अनुसंधान परिषद के सदस्य-सचिव के रूप में कार्य किया.
पिछले कई वर्षों से नारायणन को प्राचीन इतिहास के विशेषज्ञ और हिंदुत्व में विश्वास रखने वाले के रूप में स्वीकार किया जाता रहा है. उन्होंने 200 से अधिक पुस्तकें लिखी हैं. वह अंग्रेजी, तमिल और संस्कृत में समान रूप से पारंगत थे. वह एक कवि और चित्रकार भी थे, लेकिन इतिहास उनका पहला प्यार था.
चूंकि वह अपने रुचि के क्षेत्र यानी इतिहास में काफी मजबूत थे, इसलिए जिस तरह उनके कई प्रशंसक थे, उसी तरह उनके आलोचक भी काफी थे क्योंकि वह राजनीति और अन्य मुद्दों पर भी अपनी राय रखते थे.
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पीएसके/केआर
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