जम्मू-कश्मीर और हरियाणा के चुनाव नतीजों ने किसी तरह के असमंजस की गुंजाइश नहीं छोड़ी है। इसके संदेश बिल्कुल स्पष्ट हैं। जैसा कि पहले से माना जा रहा था इन चुनावों के नतीजे न सिर्फ जम्मू-कश्मीर और हरियाणा की जनता और वहां की राजनीति के लिहाज से अहम हैं बल्कि कई महत्वपूर्ण मसलों पर राष्ट्रीय राजनीति का रुख भी इनसे प्रभावित होने वाला है। नए दौर की शुरुआतजम्मू-कश्मीर के लिए ये नतीजे निश्चित रूप से एक नए दौर का संकेत माने जा सकते हैं। दस साल के अंतराल के बाद हुए इन चुनावों में आम लोगों की जैसी भागीदारी रही और जिस तरह से अलगाववादी धारा का हिस्सा रहे लोग भी चुनावी राजनीति की राह अख्तियार करते दिखे, वह न सिर्फ देश बल्कि पूरी दुनिया के लिए एक पॉजिटिव संदेश है। सबसे बड़ी बात- नैशनल कॉन्फ्रेंस और कांग्रेस गठबंधन को स्पष्ट बहुमत मिला, जिस पर चुनावी मुकाबले में कुछ पीछे रह गई PDP ने भी संतोष जताया। राज्य का दर्जाइन चुनावों ने जिस एक बात पर सबसे ज्यादा जोर दिया, वह है जम्मू-कश्मीर को राज्य का दर्जा। यह इकलौती ऐसी बड़ी मांग रही, जिस पर BJP समेत सभी पक्षों की सहमति है। शांतिपूर्ण चुनाव, उत्साहवर्धक जनभागीदारी और स्पष्ट जनादेश- ये तीनों ही बातें इस पर जोर दे रही हैं कि अब इसमें और देर नहीं करनी चाहिए। जितनी जल्दी संभव हो जम्मू-कश्मीर का पूर्ण राज्य का दर्जा बहाल होना चाहिए। तीसरी पारीहरियाणा में दस साल की कथित सत्ता विरोधी लहर को मात देते हुए BJP ने जो तीसरी बार सत्ता में वापसी की है, वह कांग्रेस के लिए बड़ा झटका है। ‘किसान, जवान और पहलवान’ के नाम पर जो नैरेटिव लंबे समय से चलाया जा रहा था, वह अब अपनी चुनावी उपयोगिता खोता दिख रहा है। कांग्रेस के हार स्वीकार करने से पहले ही जिस तरह से विपक्षी गठबंधन I.N.D.I.A. के दो घटक दलों – आम आदमी पार्टी और शिवसेना- ने कांग्रेस के रुख को निशाना बनाना शुरू कर दिया, उससे साफ है कि ये नतीजे विपक्षी राजनीति में कांग्रेस की राह मुश्किल बनाने वाले हैं। नेतृत्व को मजबूतीजहां तक राष्ट्रीय राजनीति में सत्तारूढ़ खेमे की बात है तो वहां भी ये चुनाव BJP नेतृत्व के लिए राहत लेकर आए हैं। लोकसभा चुनाव में सीटें कम होने के बाद यह चर्चा तेज हो गई थी कि घटक दलों के दबाव में सरकार चलाना आसान नहीं साबित होने वाला। संघ और BJP के कुछ नेताओं के असुविधाजनक बयान भी चर्चा बटोर रहे थे। इन सबसे यह परसेप्शन बन रहा था कि पार्टी पर मौजूदा नेतृत्व की पकड़ कमजोर हो रही है। चुनाव नतीजे इन असंतुष्ट गतिविधियों पर अंकुश लगाने का काम कर सकते हैं।
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