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Repo Rate: रेपो रेट, रिवर्स रेपो रेट, CRR-SLR आप भी उलझ जाते हैं इसमें, समझिए क्या होता है

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नई दिल्ली: रिजर्व बैंक (Reserve Bank of India) ने रेपो रेट में फिर कटौती की है। दरअसल, RBI हर दो महीने में एक बार मोनेटरी पॉलिसी की समीक्षा करता है। मौद्रिक नीति की घोषणा के दौरान हर बार रिजर्व बैंक के गवर्नर रेपो रेट (Repo Rate), रिवर्स रेपो रेट (Reverse Repo Rate) और सीआरआर (CRR) जैसे शब्दों का उपयोग करते हैं। हम आपको बताते हैं रेपो रेट, रिवर्स रेपो रेट और सीआरआर के बारे में... रेपो रेट क्या है?रेपो रेट, शार्ट फार्म है रिपर्चेज या रिप्रोडक्शन रेट का। दरअसल, बैंकों को दैनिक कामकाज के लिए केंद्रीय बैंक से पैसे की जरूरत होती है। भारत के बैंक यहां के केंद्रीय बैंक मतलब कि रिजर्व बैंक से पैसे लेते हैं। उन्हें जिस दर पर आरबीआई से पैसे मिलते हैं, वही रेपो रेट कहलाता है। रेपो रेट का आम जनता पर काफी असर पड़ता है। क्योंकि रेपो रेट घटता है तो लोगों को कम ब्याज पर बैंक से पैसे मिलते हैं। जब रेपो रेट बढ़ जाता है तो बैंक से लोन भी महंगा हो जाता है। रिवर्स रेपो रेट क्या है?बैंकों के पास जब दिन-भर के कामकाज के बाद कुछ रकम बची रह जाती है तो उसे वे रिजर्व बैंक में जमा करा देते हैं। इस रकम पर आरबीआई उन्हें ब्याज देता है। केंद्रीय बैंक से इस रकम पर जिस दर से बैंकों को ब्याज देय होता है, उसे रिवर्स रेपो रेट कहते हैं। इस रेट के घटने या बढ़ने का सीधा असर आप पर नहीं पड़ता। दरअसल, जब बाजार में नकदी कम करनी होती है तो रिजर्व बैंक रिवर्स रेपो रेट बढ़ा देता है। इससे बैंक ज्यादा ब्याज कमाने के लिए अपनी रकम उसके पास जमा करा देते हैं। सीआरआर क्या है?देश में जो भी बैंक हैं, उन्हें अपनी कुल नकदी का एक हिस्सा रिजर्व बैंक के पास जमा रखना होता है। बैंक कितनी नकदी रिजर्व बैंक के पास जमा करेगा, इसे तय करने का फार्मूला कैश रिजर्व रेशियो या सीआरआर कहलाता है। रिजर्व बैंक ने ये नियम इसलिए बनाए हैं, जिससे किसी भी बैंक में बहुत बड़ी संख्या में ग्राहकों को रकम निकालने की जरूरत पड़े तो बैंक पैसे देने से मना न कर सके। एसएलआर क्या है?रिजर्व बैंक का काम देश में नकदी या कैश की स्थिति को नियंत्रित करना भी है। एसएलआर कहते हैं स्टेचुअरी लिक्विडिटी रेशियो को। दरअसल, बैंक के पास जितनी रकम होती है, उस संपूर्ण राशि को वह लोन आदि के रूप में नहीं दे देता है। उसे संपूर्ण रकम का एक हिस्सा अपने पास रखना पड़ता है। इसे ही एसएलआर कहते हैं। कोई जरूरी नहीं है कि एसएलआर कैश में ही रहे। यह नकदी के साथ साथ सोना और सरकारी प्रतिभूतियों जैसे इंस्ट्रुमेंट में भी रख सकते हैं।
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