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पाकिस्तान, तुर्की, अजरबैजान... भारत के लिए खतरा बना 'थ्री ब्रदर एलायंस', जानें मोदी सरकार की काउंटर पॉलिसी

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इस्लामाबाद: भारत-पाकिस्तान संघर्ष में एक नया गठबंधन तेजी से उभरकर सामने आया है। इस गठबंधन का नाम 'थ्री ब्रदर एलायंस' है। इसमें पाकिस्तान और उसके दो दोस्त तुर्की और अजरबैजान शामिल हैं। ये तीनों देश एक दूसरे को आंख मूंदकर समर्थन करते हैं, चाहें मुद्दा कुछ भी हो। भारत के खिलाफ इन दोनों देशों ने पाकिस्तान को सैन्य सहायता भी प्रदान की थी। ऐसे में इस तथाकथित थ्री ब्रदर एलायंस से भारत की सुरक्षा को खतरा पैदा हो गया है। ऐसे में मोदी सरकार ने इस तिकड़ी के काउंटर के लिए एक प्लान तैयार किया है, जिससे पाकिस्तान, तुर्की और अजरबैजान की बोलती बंद हो जाएगी। भारत के खिलाफ काम कर रहे ये तीनों देशपाकिस्तान, तुर्की और अजरबैजान भारत को चुनौती देने के लिए एक साथ काम कर रहे हैं। 2021 में, पाकिस्तान, तुर्की और अजरबैजान ने बाकू शहर में एक महत्वपूर्ण शिखर सम्मेलन का आयोजन किया था। इस सम्मेलन में तीनों देशों के संबंधों को गहरा करने और सैन्य सहयोग को अभूतपूर्व स्तर पर पहुंचाने को लेकर सहमति बनी थी। तीनों देशों ने एक दूसरे के विवादित मुद्दों पर समर्थन देने का भी फैसला किया था। इन तीनों देशों के अर्ध-गठबंधन को "थ्री ब्रदर्स एलायंस" के रूप में जाना जाता है पाकिस्तान समर्थक हैं तुर्की और अजरबैजानतुर्की और अजरबैजान ने भारत के ऑपरेशन सिंदूर के बाद कूटनीतिक रूप से पाकिस्तान का समर्थन किया है। इन दोनों देशों ने बाकायदा बयान जारी कर और पाकिस्तान के राजनीतिक नेतृत्व को फोन करके अपना समर्थन जताया था। इतना ही नहीं, उन्होंने पाकिस्तान की उस मांग का समर्थन भी किया था, जिसमें पहलगाम आतंकवादी हमले की अंतरराष्ट्रीय जांच की मांग की गई थी। तुर्की ने तो ट्रांसपोर्ट विमानों के जरिए पाकिस्तान को सैन्य हार्डवेयरों की सप्लाई भी की थी। अजरबैजान ने भी यही राग अलापा था और पाकिस्तान की संप्रभुता का समर्थन किया था। एर्दोगन ने अपने फायदे के लिए बनाया है गठबंधनइन तीन देशों के गठबंधन के पीछे तुर्की के राष्ट्रपति रेसेप तैयप एर्दोगन का दिमाग है। एर्दोगन तुर्की के प्रभाव को उन देशों के साथ संबंध बनाकर बढ़ाना चाहते हैं, जो तुर्की के साथ ऐतिहासिक और सांस्कृतिक संबंध रखते हैं। वह इस्लामी जगत का नया खलीफा बनने का सपना देख रहे हैं। उनकी कोशिश सऊदी अरब को रास्ते से हटाकर खुद को मुस्लिम देशों का नया लीडर घोषित करने की है, लेकिन वह इस काम में कई बार मुंह की खा चुके हैं। अजरबैजान और तुर्की की साझा तुर्की विरासत है और तीनों ही देश बहुसंख्यक इस्लामी देश हैं। इस गठबंधन के निर्माण से तीनों देशों को फ़ायदा हुआ है। उदाहरण के लिए, तुर्की के सैन्य समर्थन ने 2020 के नागोर्नो-करबाख संघर्ष में अज़रबैजान को आर्मेनिया को हराने में मदद की। तुर्की-पाकिस्तान के मजबूत संबंधपाकिस्तान का 1950 के दशक से तुर्की के साथ घनिष्ठ रक्षा संबंध रहा है। इससे पाकिस्तान को क्रूज मिसाइल, ड्रोन और अन्य महत्वपूर्ण सैन्य तकनीक हासिल करने में मदद मिली है। 2021 में, तीनों देशों ने सैन्य समन्वय को बेहतर बनाने के लिए तीन भाइयों का सैन्य अभ्यास शुरू किया था। पाकिस्तान, तुर्की और अज़रबैजान अपने-अपने क्षेत्रीय संघर्षों में भी एक-दूसरे का समर्थन करते हैं। इसका मतलब है कि पाकिस्तान कश्मीर पर अपनी नीति का समर्थन करने के लिए अन्य दो देशों पर निर्भर करता है। तुर्की ने बार-बार संयुक्त राष्ट्र जैसे मंचों पर कश्मीर मुद्दे को उठाया है। भारत कैसे कर रहा काउंटरभारत पिछले कई वर्षों से पाकिस्तान, तुर्की और अजरबैजान को काउंटर करने के लिए अलग-अलग रणनीतियों पर काम कर रहा है। इनमें इन तीनों देशों के दुश्मनों की मदद से लेकर इन्हें आर्थिक तरीके से चोट पहुंचाना भी शामिल है। पाकिस्तान के खिलाफ भारत के कदमों से हर कोई परिचित है। अब बात करते हैं तुर्की की। भारत ने तुर्की को काउंटर करने के लिए उसके सबसे बड़े दुश्मन ग्रीस के साथ रक्षा संबंधों को मजबूत किया है। इसके अलावा भारत ने साइप्रस के मुद्दे को भी अंतरराष्ट्रीय मंचों पर उठाना शुरू किया है, जिसकी जमीन पर तुर्की ने अवैध रूप पर कब्जा जमाया हुआ है। वहीं, भारत ने तुर्की को अपने बाजार में प्रवेश को लेकर भी सख्तियां बरती है। अजरबैजान के खिलाफ भारत की नीति जानेंभारत ने अजरबैजान को काउंटर करने के लिए उसके सबसे बड़े दुश्मन आर्मेनिया को हथियारों से पाट दिया है। अजरबैजान और आर्मेनिया के बीच नागोर्नो काराबाख को लेकर पुरानी दुश्मनी है। इन हथियारों के लिए भारत ने आर्मेनिया से अडवांस में पैसे भी नहीं लिए हैं।
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