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राजस्थान में खड़ी है दुनिया की सबसे बड़ी तोप, 50 टन वजनी और 20 फीट लंबी, अगर चलती आज तो उड़ा देती चिथड़े

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आज भारत ने जो पाकिस्तान को पहलगाम आंतकी हमले का जवाब दिया है, उसे देख हर भारतीय का सीना गर्व से चौड़ा हो चुका है, आर्मी की वीरता और शौर्य की गाथा जितनी कर लें उतनी कम है। ऐसा ही एक समय था, जब राजा-महाराजा के सैनिक सामने वाले शत्रुओं से लड़ने के लिए एक से एक योजना के साथ युद्ध लड़ा करते थे और इन युद्धों में उनका साथ दिया करते थे उनके अस्त्र-शस्त्र और उनकी तोपें जो सीधा दुश्मन के सीने को चीर दिया करती थीं।

एक ऐसी ही तोप का जिक्र हम आपके साथ करने वाले हैं, जिसके बारे में कहा जाता है कि अगर ये आज के समय में चलती तो किसी भी देश के हिस्से को खत्म कर सकती थी। हम बात कर रहे हैं, एशिया और दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी पहियों वाली तोप जयवाना तोप की। ये 18वीं सदी में महाराजा सवाई जय सिंह द्वितीय ने बनवाई थी। लेकिन खास बात ये है कि इस तोप का कभी इस्तेमाल युद्ध में नहीं हुआ, इसे कभी चलाया ही नहीं गया। आज यह जयगढ़ किले में रखी है और इसकी विशालता और सुंदर नक्काशी को देखने के लिए बड़ी संख्या में पर्यटक आते हैं। चलिए आज हम आपको भारत की इस बेहतरीन तोप के बारे में पूरी जानकारी देते हैं।
जयवाना तोप के बारे में image

बहुत कम लोगों को ये पता होगा, जयगढ़ किला दुनिया के सबसे बड़े पहियों पर लगी तोप का घर है, जिसे जयवाना तोप कहा जाता है। करीबन 50 टन भारी और 20 फीट लंबी ये विशाल तोप 1720 में इसी किले के कारखानों में बनाई गई थी। टीओआई के अनुसार, ये तोप 50 किलो तक वजन वाले गोलों को कई किलोमीटर दूर तक दाग सकती थी। हालांकि इसे कभी युद्ध में इस्तेमाल नहीं किया गया, लेकिन ये तोप आज भी किले की ताकत और उस दौर की शानदार सैन्य तकनीक का जीता-जागता उदाहरण है।


तोप के वजन को लेकर दिलचस्प बात image

रिकॉर्ड्स के अनुसार, इस भारी तोप को खींचने के लिए चार हाथियों की मदद ली गई थी। इसकी बड़ी आकार और भारी वजन के कारण इसे बनाना और एक जगह से दूसरी जगह ले जाना बहुत मुश्किल काम था। इस दौर की तोपों में अक्सर सजावट और नक्काशी देखने को मिलती है, जैसा कि जयवाना तोप पर साफ देखा जा सकता है। इस तोप पर उस समय के राजा का नाम और निशान, कुछ पौराणिक जानवरों की आकृतियां, फूल-पत्तियों और ज्यामितीय डिजाइनों के साथ धार्मिक श्लोक और सांस्कृतिक नक्काशियां बनी हुई हैं।


एक ही बार चली तोप लेकिन बना दिया तालाब image

इसे इतनी सावधानी और मजबूती से बनाया गया था कि फायरिंग के समय पैदा होने वाले जबरदस्त दबाव को झेल सके। किस्मत कहिए या हालात, लेकिन जयवाना तोप को कभी युद्ध में इस्तेमाल नहीं किया गया - न तो हमला करने के लिए और न ही बचाव के लिए। स्थानीय कहानियों के मुताबिक, इस तोप को सिर्फ एक बार टेस्ट के लिए चलाया गया था।

टेस्ट फायरिंग का धमाका इतना जबरदस्त था कि गोला करीब 35 किलोमीटर दूर जाकर गिरा। वो जाकर चाकसू गांव के पास गिरा और वहां एक बड़ा सा गड्ढा बन गया, जो धीरे-धीरे एक तालाब में बदल गया। आज वही तालाब आसपास के इलाकों के लिए पानी का स्रोत बना हुआ है।


कहां रखी है ये तोप image

जयगढ़ किला, जिसे "विजय का किला" भी कहा जाता है, 18वीं शताब्दी में महाराजा जय सिंह द्वितीय द्वारा बनवाया गया था, जो जयपुर के संस्थापक थे। ये किला अरावली की पहाड़ियों पर स्थित है जहां से आप आमेर किले और माओता झील को देख सकते हैं। इस किले के ऊंचा होने की वजह से ये उस दौरान सैनिकों के लिए सुरक्षा का काम किया करती थी। इससे आमेर किले को भी सुरक्षा मिलती थी और राजपरिवार के लिए एक रक्षक किला थी।


किले में है गुप्त सुरंग image

कहानी है कि जयगढ़ किले में एक गुप्त सुरंग है जो इसे आमेर किले से जोड़ती है। यह सुरंग अब तक पूरी तरह से खोजी नहीं गई है, लेकिन माना जाता है कि इसका इस्तेमाल युद्ध या हमले के समय राजपरिवार को सुरक्षित निकालने या चुपचाप आने-जाने के लिए किया जाता था। ये रहस्यमयी सुरंग जयगढ़ के इतिहास को और भी दिलचस्प बनाती है।


किले को देखने के लिए समय और टिकट image

टाइमिंग: 9:00 am – 4:30 pmएंट्री टिकट:

  • ₹35 प्रति व्यक्ति भारतीयों के लिए
  • ₹85 प्रति व्यक्ति विदेशियों के लिए
  • ₹50 स्टिल कैमरा के लिए
  • ₹200 वीडियो कैमरा के लिए

कैसे पहुंचे जयगढ़ किला image

जयगढ़ किला जयपुर, राजस्थान में आमेर किले के पास स्थित है। यहां पहुंचने के लिए आप जयपुर रेलवे स्टेशन या एयरपोर्ट से टैक्सी, ऑटो या बस ले सकते हैं। आमेर किले से जयगढ़ तक सड़क मार्ग है, जहां निजी गाड़ियां और जीप आसानी से जाती हैं। ट्रैकिंग के शौकीनों के लिए एक ट्रेकिंग रूट भी है जो पहाड़ियों से होकर सीधे किले तक जाता है।

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