महाराणा प्रताप की 485वीं जयंती : वीर शिरोमणि महाराणा प्रताप की 485वीं जयंती के अवसर पर स्थानीय हिंदू भवन में एक भव्य कार्यक्रम का आयोजन किया गया। इस कार्यक्रम में समाज के विभिन्न वर्गों के लोगों ने उत्साहपूर्वक भाग लिया और मेवाड़ के इस महान सपूत को अपनी श्रद्धांजलि अर्पित की। कार्यक्रम के मुख्य अतिथि के रूप में उपस्थित पूर्व विधायक [यदि नाम ज्ञात हो तो उल्लेख करें, अन्यथा ‘एक पूर्व विधायक’] ने महाराणा प्रताप के जीवन और उनके संघर्षों पर प्रकाश डाला।
पूर्व विधायक ने अपने संबोधन में कहा, “महाराणा प्रताप केवल एक शासक नहीं, बल्कि स्वाभिमान, शौर्य और अटूट देशभक्ति के प्रतीक हैं। उन्होंने सीमित संसाधनों के बावजूद मुगलिया सल्तनत के सामने कभी घुटने नहीं टेके और अपनी मातृभूमि की स्वतंत्रता के लिए अंतिम सांस तक संघर्ष किया।” उन्होंने आगे कहा कि आज के समय में महाराणा प्रताप के जीवन से सबसे बड़ी सीख एकता और संगठन की है। “जिस प्रकार उन्होंने सभी वर्गों को साथ लेकर एक शक्तिशाली सेना बनाई, उसी प्रकार हमें भी एकजुट रहकर समाज और राष्ट्र के सामने आने वाली चुनौतियों और समस्याओं का समाधान करना चाहिए। यदि हम एकजुट रहेंगे, तो कोई भी समस्या ऐसी नहीं जिसका समाधान न किया जा सके।”
कार्यक्रम की शुरुआत महाराणा प्रताप के चित्र पर माल्यार्पण और दीप प्रज्वलन के साथ हुई। इस अवसर पर कई अन्य वक्ताओं ने भी अपने विचार रखे और महाराणा प्रताप के त्याग, बलिदान और उनके युद्ध कौशल को याद किया। वक्ताओं ने युवाओं से महाराणा प्रताप के आदर्शों को अपने जीवन में उतारने का आह्वान किया ताकि एक सशक्त और स्वाभिमानी राष्ट्र का निर्माण हो सके।
उपस्थित जनसमुदाय ने महाराणा प्रताप के जयकारों से पूरे वातावरण को गुंजायमान कर दिया। कार्यक्रम का समापन राष्ट्रगान के साथ हुआ, जिसमें सभी ने उनके दिखाए मार्ग पर चलने का संकल्प लिया। यह आयोजन न केवल एक ऐतिहासिक व्यक्तित्व को याद करने का माध्यम बना, बल्कि सामाजिक समरसता और एकता के महत्व को भी रेखांकित कर गया।
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