दुनिया भर में मानसिक स्वास्थ्य से जुड़ी सबसे सामान्य समस्याओं में से एक है एंग्ज़ाइटी, जिसे हिंदी में चिंता कहा जाता है। तनाव या चुनौतीपूर्ण परिस्थितियों में चिंता का अनुभव करना सामान्य है, लेकिन जब यह भावना अत्यधिक, लगातार और असामान्य हो जाती है, तो यह जीवन को नकारात्मक रूप से प्रभावित कर सकती है। विशेषज्ञों का कहना है कि यदि एंग्ज़ाइटी को समय पर पहचाना और नियंत्रित नहीं किया गया, तो यह गंभीर समस्याओं जैसे डिप्रेशन, हृदय रोग, पाचन संबंधी समस्याएं और यहां तक कि आत्महत्या का कारण बन सकती है।
एंग्ज़ाइटी की परिभाषा
एंग्ज़ाइटी या चिंता, हमारे मस्तिष्क की एक स्वाभाविक प्रतिक्रिया है, जो किसी संभावित खतरे या चुनौती के प्रति सतर्क करती है। हालांकि, जब यह भावना अत्यधिक, बार-बार और बिना किसी स्पष्ट कारण के होती है, तो यह मानसिक विकार का रूप ले सकती है।
एंग्ज़ाइटी और तनाव में अंतर
तनाव आमतौर पर किसी वर्तमान समस्या, जैसे नौकरी का दबाव या पारिवारिक विवाद के कारण होता है और समय के साथ कम हो जाता है। जबकि एंग्ज़ाइटी कई बार बिना किसी स्पष्ट कारण के, मन में चल रही आशंकाओं के कारण होती है और लंबे समय तक बनी रहती है।
एंग्ज़ाइटी का स्वास्थ्य पर प्रभाव
फुओंग ली के अनुसार, लंबे समय तक एंग्ज़ाइटी रहने से यह हृदय प्रणाली, पाचन तंत्र, इम्यून सिस्टम और नींद को प्रभावित कर सकती है। इससे इरिटेबल बाउल सिंड्रोम, अल्सर, उच्च रक्तचाप, स्ट्रोक और ऑटोइम्यून बीमारियों जैसी गंभीर समस्याएं हो सकती हैं।
एंग्ज़ाइटी को प्रबंधित करने के तरीके
- माइंडफुलनेस: वर्तमान क्षण पर ध्यान केंद्रित करना और विचारों को नियंत्रित करना।
- गहरी सांस लेना और विश्राम तकनीकें: मानसिक शांति के लिए।
- 'चिंता का समय' निर्धारित करना: चिंता करने के लिए एक सीमित समय तय करना ताकि बाकी दिन उत्पादकता बनी रहे।
- डायरी लिखना: कब, क्यों और कैसे एंग्ज़ाइटी होती है, इसे ट्रैक करने के लिए।
- बातचीत करना: भरोसेमंद लोगों से बात करने से मानसिक राहत मिलती है।
सीबीटी (कॉग्निटिव बिहेवियरल थेरेपी)
- नकारात्मक सोच की पहचान और पुनर्गठन: गलत धारणाओं को तथ्यों से तोड़ना।
- व्यवहारिक सक्रियता: सकारात्मक गतिविधियों से मूड को सुधारना।
- एक्सपोज़र थेरेपी: डरावनी परिस्थितियों का धीरे-धीरे सामना करना।
- डायरी और आत्म-प्रतिबिंब: सोचने के पैटर्न को समझना और सुधारना।
दवाओं का कार्यप्रणाली
सर्ट्रेलाइन (Lustral) और फ्लूऑक्सेटिन (Prozac) जैसी SSRI दवाएं मस्तिष्क में सेरोटोनिन के स्तर को संतुलित करने में मदद करती हैं। सेरोटोनिन एक न्यूरोट्रांसमीटर है जो मूड को नियंत्रित करता है। हालांकि, विशेषज्ञों का मानना है कि दवाएं अकेले समाधान नहीं हैं। इन्हें थेरेपी और जीवनशैली में बदलाव के साथ अपनाना चाहिए।
एंग्ज़ाइटी से जुड़ी सामान्य भ्रांतियाँ
- यह केवल कमजोर लोगों को होती है: वास्तव में, यह किसी को भी हो सकती है। इसके कारण जैविक, पर्यावरणीय और आनुवंशिक हो सकते हैं।
- समय के साथ यह अपने आप ठीक हो जाती है: बिना उपचार के, यह स्थिति और बिगड़ सकती है।
- बात करने से एंग्ज़ाइटी बढ़ती है: इसके विपरीत, बात करने से राहत मिलती है और मदद मिलने की संभावना बढ़ती है।
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