राजस्थान की ऐतिहासिक धरती पर बसा उदयपुर अपने भव्य महलों, झीलों और समृद्ध सांस्कृतिक विरासत के लिए दुनियाभर में प्रसिद्ध है। लेकिन इस शहर की सबसे चमकदार पहचान है – उदयपुर सिटी पैलेस। यह महल न केवल मेवाड़ के शौर्य का प्रतीक है, बल्कि भारत की वास्तुकला और राजसी जीवनशैली का एक अद्भुत उदाहरण भी है। आइए जानते हैं कि यह शाही किला कब और कैसे बना, इसके निर्माण की प्रेरणा क्या रही और इसकी वो खास बातें जो इसे भारत के सबसे प्रतिष्ठित महलों में से एक बनाती हैं।
इतिहास: कब और किसने कराया निर्माण?
उदयपुर सिटी पैलेस का निर्माण महाराणा उदयसिंह द्वितीय ने 1553 ईस्वी में कराया था। जब चित्तौड़ पर मुगलों के हमले तेज हो गए और बार-बार युद्ध होने लगे, तब महाराणा उदयसिंह ने एक शांत और सुरक्षित स्थान की तलाश की। उन्होंने झीलों से घिरे इस क्षेत्र को उपयुक्त पाया और यहां उदयपुर शहर की नींव रखी। इसी के साथ उन्होंने पहाड़ियों और झीलों के बीच सिटी पैलेस का निर्माण शुरू कराया।हालांकि, यह महल एक दिन या एक ही राजा के काल में पूरा नहीं हुआ। इसे कई पीढ़ियों तक, करीब 400 वर्षों में महाराणा प्रताप, महाराणा करन सिंह, महाराणा सज्जन सिंह जैसे शासकों ने धीरे-धीरे आगे बढ़ाया और भव्य रूप दिया। यही कारण है कि महल की वास्तुकला में विभिन्न कालों की छाप साफ दिखती है।
स्थापत्य कला: शिल्प का अद्भुत संगम
सिटी पैलेस का निर्माण राजस्थानी और मुगल स्थापत्य कला के मिश्रण से हुआ है। विशाल महल परिसर में संगमरमर और ग्रेनाइट का शानदार उपयोग किया गया है। इसकी नक्काशीदार खिड़कियाँ, सुंदर जालियाँ, रंगीन शीशों का काम और हाथ से बनी भित्ति चित्रकारी इसे कला प्रेमियों के लिए स्वर्ग बना देती है।महल परिसर अरावली की पहाड़ियों पर स्थित है और इसमें कई महल, आंगन, मंदिर, गलियारे और उद्यान शामिल हैं। इसके कुछ प्रसिद्ध भाग हैं – मोती महल, शीश महल, दुर्गाना महल, प्रेम प्रकाश महल, और भूपाल विलास। हर भवन की अपनी अलग कहानी और शिल्प विशेषता है।
खासियतें जो बनाती हैं इसे अनोखा
पिछोला झील का नजारा: सिटी पैलेस पिछोला झील के किनारे स्थित है, जिससे इसकी सुंदरता और भी बढ़ जाती है। महल से झील के पार स्थित जग मंदिर और लेक पैलेस का दृश्य मंत्रमुग्ध कर देने वाला होता है।
कृष्ण विलास और मोर चौक: महल का 'कृष्ण विलास' हिस्सा उस समय की शाही जीवनशैली की झलक दिखाता है, जबकि 'मोर चौक' में कांच से बनीं चार खूबसूरत मोर प्रतिमाएं हैं, जो कला की उत्कृष्ट मिसाल हैं।
शाही संग्रहालय: अब सिटी पैलेस का एक हिस्सा संग्रहालय के रूप में विकसित किया गया है जिसमें मेवाड़ राजघराने से जुड़ी दुर्लभ वस्तुएँ, पोशाकें, हथियार, फर्नीचर और चित्रकलाएं सुरक्षित हैं।
दरबार हॉल: दरबार हॉल में शाही दीवान-ए-खास हुआ करता था। इसका आंतरिक सजावट, झूमर और फर्श का काम बेजोड़ है। यहां महाराणाओं के चित्र भी दीवारों पर लगाए गए हैं।
राजसी प्रवेश द्वार: महल में कुल 11 प्रवेश द्वार हैं जिन्हें 'पोल' कहा जाता है। उनमें से सबसे प्रसिद्ध है बाड़ी पोल और त्रिपोलिया गेट। इन द्वारों से होकर जब आप महल में प्रवेश करते हैं, तो ऐसा प्रतीत होता है मानो समय पीछे लौट गया हो।
सिटी पैलेस आज
आज सिटी पैलेस सिर्फ एक ऐतिहासिक धरोहर नहीं, बल्कि एक जीवंत सांस्कृतिक केंद्र है। इसका एक हिस्सा अब भी मेवाड़ राजघराने के पास है, जबकि बाकी हिस्सा पर्यटकों के लिए खुला है। महल परिसर में भव्य शादियाँ, सांस्कृतिक कार्यक्रम और उत्सव आयोजित किए जाते हैं।यह महल राजस्थान की उस परंपरा को जीवित रखता है जहाँ वास्तुकला, इतिहास और संस्कृति का अद्भुत संगम होता है। सिटी पैलेस को देखने हर साल देश-विदेश से लाखों पर्यटक आते हैं और मेवाड़ की शौर्यगाथा से रूबरू होते हैं।
उदयपुर सिटी पैलेस न केवल स्थापत्य की दृष्टि से बेमिसाल है, बल्कि यह इतिहास की गहराइयों से जुड़ी वह कड़ी है जो आज भी मेवाड़ की गौरवशाली परंपरा को जीवित रखे हुए है। यह महल सिर्फ पत्थरों की एक इमारत नहीं, बल्कि राजपूती आत्मा की पहचान है। यदि आप राजस्थान के इतिहास और भव्यता को महसूस करना चाहते हैं, तो एक बार सिटी पैलेस की सैर जरूर करें – यह अनुभव आपको सदैव स्मरणीय रहेगा।
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