भारत का पहला उपग्रह "आर्यभट्ट" 19 अप्रैल 1975 को प्रक्षेपित किया गया, जो भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) की एक ऐतिहासिक उपलब्धि थी। इस उपग्रह को तीन वर्षों में बनाया गया और इसकी लागत लगभग ₹3 करोड़ आई
आर्यभट्ट उपग्रह की मुख्य विशेषताएं:नामकरण: इस उपग्रह का नाम 5वीं शताब्दी के महान गणितज्ञ और खगोलशास्त्री आर्यभट्ट के नाम पर रखा गया था।
वजन: इसका वजन लगभग 360 किलोग्राम था
प्रक्षेपण स्थल: इसे सोवियत संघ के कपुस्टिन यार कॉस्मोड्रोम से कॉस्मोस-3एम प्रक्षेपण वाहन द्वारा प्रक्षेपित किया गया था।
उद्देश्य: आर्यभट्ट को एक्स-रे खगोल विज्ञान और सौर भौतिकी में प्रयोगों के लिए डिज़ाइन किया गया था
कार्यकाल: इस उपग्रह ने प्रक्षेपण के पांच दिनों के भीतर बिजली की विफलता के कारण डेटा संचारण बंद कर दिया, लेकिन यह लगभग 17 वर्षों तक पृथ्वी की कक्षा में रहा।
इस परियोजना की सफलता ने भारत को अंतरिक्ष अनुसंधान में एक नई पहचान दी और भविष्य के मिशनों के लिए मार्ग प्रशस्त किया।
इस ऐतिहासिक उपलब्धि की स्मृति में 1976 में भारत सरकार ने 2 रुपये के नोट पर आर्यभट्ट उपग्रह का चित्र भी प्रकाशित किया।
यह मिशन इसरो के लिए मील का पत्थर साबित हुआ, जिसने भारत को अंतरिक्ष विज्ञान में आत्मनिर्भर बनने की दिशा में आगे बढ़ाया।
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